बिहार के गोपालगंज की यह तस्वीर दिल को झकझोर देने वाली है। माता-पिता ही अपने कलेजे के टुकड़े को 10 साल से जंजीर में बांधकर रखते हैं। अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहे हैं। गरीबी ऐसी है कि वे उसे डॉक्टर काे दिखाने शहर तक नहीं ला पाते।
मामला गोपालगंज के करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित बरौली के सलेमपुर गांव का है। यहां के जनार्दन प्रसाद और सिंधु देवी के बेटे आकाश को 4 साल की उम्र में तेज बुखार हुआ था। गरीब परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि अपने बच्चे का इलाज करा सके। इसके बावजूद किसी तरह अपनी क्षमता के अनुसार उन्होंने बच्चे के इलाज की कोशिश की, लेकिन वह कारगर साबित नहीं हुआ। इससे बच्चा मानसिक रूप से कमजोर हो गया। तब से लेकर आज तक इस बच्चे को एक पेड़ से बांध कर रखा जाता है।
मां बोली- कूड़ा-कचरा भी डाल लेता है अपने मुंह में
मां सिंधु देवी रोते हुए कहती हैं कि आकाश कभी जमीन से मिट्टी खा लेता है तो कभी कूड़ा-कचरा अपने मुंह में डाल लेता है। जब से उसकी हालत बिगड़ी है, तब से बोलता भी नहीं है। बेटे के मुंह से मां सुनने को दिल तरस गया है। दंपती के तीन बच्चों में आकाश सबसे बड़ा है।
मजबूरी में अपने बेटे को पेड़ से रस्सी में बांध कर रखती हैं। ताकि वह कहीं भाग न जाए। मां कहती है कि मेरा बेटा चाहे जैसा है, लेकिन मेरी आंखों के सामने रहे। इसलिए इसे बांध कर रखने को मजबूर हूं। हमें देखने वाला कोई नहीं है। बच्चे का इलाज नहीं करवा सकते, जिससे वह स्वस्थ होकर अपने परिवार के साथ रह सके।
इलाज जल्दी शुरू हो तो ठीक होने का रहता है चांस: डॉक्टर
इस संदर्भ में मनोरोग चिकित्सक शशि रंजन प्रसाद ने कहा कि मनोरोग दो तरह के होते हैं। मानसिक मंदता और मानसिक बीमारी। मानसिक मंदता जन्मजात होती है। वहीं मानसिक बीमारी किसी भी उम्र में हो सकता है। इनका इलाज रोग की पहचान कर जितना जल्दी हो सके, शुरू करवा देना चाहिए। इससे उनके ठीक होने की संभावना ज्यादा रहती है। बीमारी ठीक करने के लिए दवा के साथ-साथ थैरेपी काउंसिलिंग का भी प्रयोग किया जाता है।
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